Hi,
Yes, I am resting today, but writing another post. Therefore, I am back again.
In the life of A Depressed Heart (A.D.H.) there is a big vaccum. it is too much bigger than the feeling of sadness.
ख़ालीपन तो बस ख़ालीपन ही होता है, दूसरे शब्दों में, निर्वात या अंग्रेज़ी में vaccum. यह निर्वात ना तो निर्वाह के योग्य है और ना ही निर्वाण के. आप इसका कुछ नहीं कर सकते. (सम्भव है कि यह मेरी निराशावादिता कह रही है, पर यह सच है कि इसका कुछ भला हो पाना ना के बराबर ही है) अब हर व्यक्ति कि स्थिति थोड़ी सी अलग होती है, कुछ में ख़ालीपन के साथ निराशा ज़्यादा होती है, तो कुछ में कम. व्यक्ति की निराशावादिता की मात्रा ही यह तय करती है कि उसका विनाश कितनी जल्दी होगा, उन्नति या प्रगति की कोई भी सम्भावना मैं नहीं देखता. (ख़ुद से तो वह कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता, ये मेरा अनुभव है क्योंकि उसमें आगे बढ़ने की इच्छाशक्ति का अभाव जो है.) यह एक बड़ा सत्य है कि निराशावाद की मात्रा व्यक्ति के अन्दर के ख़ालीपन को लगातार बढ़ाती जाती है. और व्यक्ति धीरे-धीरे संज्ञा-शून्यता की ओर बढ़ता जाता है. एक समय ऐसा आता है कि उसमें और कोमाग्रस्त व्यक्ति में कोई अन्तर नहीं रह जाता है. मैं स्वयं को पतनोन्मुख पा रहा हूँ, इसीलिए किसी भी फ़्रेंड रिकवेस्ट को अब तक नहीं स्वीकारा है. जब मुझे मुझमें कुछ सकारात्मक दिखेगा, कुछ ख़ुशियाँ दिखेंगी तो ज़रूर शेयर करूँगा आप सभी के साथ, तब आप लोगों को जोड़ लूँगा. मेरा यह लेख (लेख तो नहीं है ये, मैं मेरे मन के विचारों को लगातार टाइप करता जा रहा हूँ, यह मेरा ख़ुद का अवसादग्रस्त जीवन है. मैं ज़रूर इन विचारों को व्यवस्थित कर कई सारे आलेख लिखना चाहूँगा. क्योंकि ऐसे विचार ना तो किसी पुस्तक में हैं और ना ही इंटर्नेट पर ऐसी कोई जानकारी है, अतः यह बेहद आवश्यक भी है) उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकता है जो स्वयं तो स्वस्थ हैं और उनके घर में कोई अवलसादग्रस्त व्यक्ति रहता हो, जिसकी वे देखभाल करना चाहते हों. एक स्वस्थ मानसिकता वाले व्यक्ति को चाहिये कि अवसाद-ग्रस्त व्यक्ति को समझे. हर अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की स्थिति अलग अलग होती है. एक अवसाद ग्रस्त व्यक्ति के साथ क्या न करें - * आप तर्क मत लगाइए उनके साथ, * उन पर दया मत दिखाइए, * उनसे प्यार से भी मत बोलिये, * उनसे नफ़रत से भी मत बोलिये, * एक उपेक्षा का भाव उनके प्रति मत रखिये, * उनका सहयोग भी मत कीजिए, हा हा हा, बिलकुल सही लिखा है मैंने, पर एक स्वस्थ व्यक्ति कुछ समझ पायेगा, मुझे बड़ा ही कठिन लग रहा है. अब शायद आप पूछेंगे कि बात करने का कौन सा तरीक़ा आप ने छोड़ा है भाई, यहाँ तक कि उपेक्षा की भी मनाही कर दी है!! क्या फ़ोन करके बात करें कि ईमेल लिखें !! हाँ नहीं तो...... हा हा हा, यही तो प्रॉब्लम है मित्रों कि अवसाद ग्रस्त व्यक्ति से कैसे पेश आएँ कोई नहीं जानता, सबसे बड़ी बात कि हर व्यक्ति के अवसाद और निराशा का स्तर अलग अलग होता है, जिसके लिए कोई थर्मामीटर भी नहीं बना है. मैं फिर भी आप की सहायता कर सकता हूँ कि कैसे उनसे बात की जाय. एक कोशिश कर रहा हूँ - एक माँ की तरह या एक संवेदनशील व्यक्ति की तरह बिना अवसाद ग्रस्त व्यक्ति के कहे ही उसकी बात को समझिये, मित्रों यही एकमात्र रास्ता है बात करने का. एक बात और, यदि आप वास्तव में सहायता करने के इच्छुक हैं तो आप ऐसे सहायता कीजिये कि आप की सहायता दया भाव ना लगे, बेमन से की गयी सहायता ना लगे, आप की सहायता सहायता ना लगे. सहायता करना आप का काम था, आप ने किया और गए, बिना कोई बदले में उम्मीद के. एक बात याद रखिये कि अवसादग्रस्त मस्तिष्क सब देख सुन रहा होता है, बस प्रतिक्रिया नहीं करता. आप बुरा करेंगे तो भी वह नहीं बोलेगा, आप अच्छा करेंगे तो भी वह नहीं बोलेगा. मुझे ऐसा लगता है कि शायद वह आप के द्वारा की गयी ढेर सारी अच्छाइयों पर कभी एक अच्छी और सकारात्मक प्रतिक्रिया दे दे. एक बात थोड़ी हटके है, कि अवसादग्रस्त व्यक्ति ख़ुद अच्छा करना चाहता है, पर उसकी कमज़ोरियाँ उसको रोक लेती हैं. आपने एक बच्चे को देखा होगा जो खड़े होने की कोशिशें करता है, क्योंकि वह आगे बढ़ना चाहता है पर अवसादग्रस्त व्यक्ति वह बच्चा है जो कि आगे बढ़ना तो चाहता है (सभी नहीं) पर खड़े होने की कोशिशें नहीं करना चाहता. अवसादग्रस्त को एक शब्द में बोलूँ तो यह है इच्छाशक्ति का अभाव. यह अभाव है - * साँस लेने की इच्छा का अभाव, (साँस लेना भी बोझ लगता है, पर ध्यान रहे यह मरने की इच्छा से थोड़ा सा अलग है) * हँसने की इच्छा का अभाव, * रोने की इच्छा का अभाव, * ख़ुश होने की इच्छा का अभाव, * लोगों से मिलने की इच्छा का अभाव, * अकेले रहने की इच्छा का अभाव, * खाने की इच्छा का अभाव, * भूखे रहने की इच्छा का अभाव, * जीने की इच्छा का अभाव, * मरने की इच्छा का अभाव, * जीवन में प्रगति की इच्छा का अभाव, * जीवन में अवनति की इच्छा का अभाव, * बड़ी ही विकट स्थिति होती है यह. अब आप कहेंगे कि भाई जब कुछ स्पष्ट ही नहीं है तो फिर होता क्या है !! (एक गाना याद आ रहा है कि वही होता है जो मंजूरे ख़ुदा होता है, ख़ैर यह तो हँसी की बात हो गयी) उनके जीवन में बस जो हो रहा हो होता जाता है, जैसे मैंने खाना खाने या ना खाने की बात की है तो इसका मतलब है कि वह खाना तो खायेगा भूख तो लगना शाश्वत नियम है, पर बेमन से, वह भी अनुचित समय पर, वह भी आधा अधूरा. उसको पकवान की कभी कोई चाह नहीं होती है. आप पकवान और सूखा भोजन उसके सामने रख दें वह दोनों को एक समान भाव से खाएगा. और यदि पकवान ना देकर उठा ले जाएँगे तो भी वह चुप चाप सड़ा भोजन खा लेगा. इसलिए नहीं कि वह आप से लड़ाई मोल नहीं लेना चाहता, ना तो इसलिए कि उसको पकवान बेकार लगा, बल्कि उसको कोई भी फ़र्क़ नहीं पड़ता दोनों भोजन में. फिर उसे बेहद सड़ा-गला और बासी भोजन खाने से भी कोई गुरेज़ नहीं होती. ठीक वही बात प्रगति और अवनति की भी है, वह प्रगति तो चाहता है (शायद, सभी अवसाद ग्रस्त नहीं चाहते) पर क़दम उठाने का इच्छुक नहीं है. ऐसे में आप को कैसे आचरण करना चाहिये !! यह बड़ा प्रश्न नहीं बल्कि बेहद संवेदनशील प्रश्न है. आप को उसको आगे बढ़ाने के लिए थोड़ा सा बल देना चाहिये पर ज़्यादा नहीं, यह आप की समझदारी पर निर्भर करता है, (याद रहे कि उसकी कमियाँ ज़रूर उसके आड़े आयेंगी) आप उसकी उँगली पकड़ कर उसको बड़े ही प्यार से, बेहद ही संवेदनशील तरीक़े से उसको चलाइये, पर ज़्यादा न चलायें, क्योंकि उसको आदत जो नहीं है. जब वह थोड़ा चल ले तो उसको उसके मनपसन्द उपहारों से लाद दीजिये. ऐसा बार बार कीजिये, फिर सब ईश्वर पर छोड़ दीजिये. मेरा मानना है कि ज़रूर कुछ अच्छा होगा. मेरा कहना है कि आप उसके लिये वह सब कुछ करिये जो की एक स्वस्थ व्यक्ति को ख़ुद के लिए करना चाहिये. आप यह सोचिए और समझिये कि उसको अभी आपकी देखभाल और प्यार की आवश्यकता है, वह अभी स्वयं अपने काम कर पाने में असमर्थ है. उसको सामान्य होने के लिए थोड़ा समय दीजिए. कितना !! यह तो ईश्वर की इच्छा पर है. अब एक बात और (यह बहुत कठिन बात है, सबके लिए सम्भव भी नहीं है और यह अत्यन्त धैर्य का विषय है) कि हम एक अवसादग्रस्त व्यक्ति को सामान्य बनाने के लिये क्या क्या कर सकते हैं - * आप उसे जब तब गले लगाइये, यह इग्नोर कर के कि वह बेहद गन्दा है, उसे सफ़ाई पसन्द नहीं है. कभी ना भड़कें उसकी गन्दगी पर, आप पूरी तरह से इग्नोर कर दें. यह आप की अग्नि परीक्षा है और उसके मृत मन पर प्यार का मरहम या संजीवनी साबित हो सकती है. (मैं गारण्टी नहीं लूँगा, पर मेरी तरफ़ से पूरे बल के साथ यह बात कही जा रही है. मृत मन में जान फूँकी जा सकती है भला!! पर चमत्कार नाम की भी चीज़ होती है मित्रों) * आप उसकी आवश्यकता की सभी वस्तुएँ उसके पास रख दें, जैसे कम्बल, साफ़ कपड़े, साफ़ पानी आदि. और आप यह भी जानिये कि गन्दगी नकारात्मक ऊर्जा का स्तर बढ़ाती है और स्वच्छता सकारात्मक ऊर्जा का, तो यदि वह भले ही साफ़ सफ़ाई को ना समझे या समझ के बावजूद भी गन्दा रहे, तो आप सफ़ाई बनाए रखें, क्या पता, कब उसके अन्दर यह सब देख कर सफ़ाई की भावना पैदा हो जाए या कम से कम गन्दा रहने का एक सकारात्मक भाव पनप जाए. उसकी ज़रूरत की सभी वस्तुएँ उसके पास रखें मगर बिना अहसान जताये, बिना दया दिखाए, बिना प्यार जताये [प्यार भी नहीं, ये विपरीत भाव पैदा कर सकता है, उसका निराशावादी आत्मघाती मन (शायद सभी के लिए घातक, आप के प्रति भी) सब नष्ट कर देना चाहता है] आप उसको उसकी ज़रूरत की सभी वस्तुएँ देना मात्र अपना कर्तव्य समझें, इसमें भावना की रत्ती भर भी मिलावट नहीं होनी चाहिये. * ना तो आप उसे सामान्य (व्यक्ति) समझें,क्योंकि वह एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में सभी मामलों में कमज़ोर है. ना ही आप उस की किसी से तुलना करें, क्योंकि हर व्यक्ति अपने-आप में दूसरे से अलग होता है. तुलना इसलिए भी ना करें क्योंकि ये अवसादग्रस्त व्यक्ति की कमज़ोरियों को सामने लाती है और एक बेहद कमज़ोर मन को और निराश कर देती है. आप उसकी सहायता करना ही चाहते हैं तो उसकी कमज़ोरियों को धीरे धीरे उससे मुक्त करिए. कमज़ोरियों को कभी ढँकने छिपाने की कोशिश मत कीजिए, हाईलाइट भी ना करें. कमज़ोरियों को स्वतः सामने आने दीजिये और व्यक्ति को जूझने दें. जूझने में सहायता न करें, पर जब वह थक जाये, लड़खड़ा जाये या गिर जाये तब आप ज़रूर उसके लिए उपलब्ध रहें. (मैं यदि कभी सम्भव हुआ तो अवसादग्रस्त व्यक्तियों के लिये केयर सेण्टर खोलना चाहूँगा)
I have written this in Hindi language, very soon I translate this in inglish.
Yes, I am resting today, but writing another post. Therefore, I am back again.
In the life of A Depressed Heart (A.D.H.) there is a big vaccum. it is too much bigger than the feeling of sadness.
ख़ालीपन तो बस ख़ालीपन ही होता है, दूसरे शब्दों में, निर्वात या अंग्रेज़ी में vaccum. यह निर्वात ना तो निर्वाह के योग्य है और ना ही निर्वाण के. आप इसका कुछ नहीं कर सकते. (सम्भव है कि यह मेरी निराशावादिता कह रही है, पर यह सच है कि इसका कुछ भला हो पाना ना के बराबर ही है) अब हर व्यक्ति कि स्थिति थोड़ी सी अलग होती है, कुछ में ख़ालीपन के साथ निराशा ज़्यादा होती है, तो कुछ में कम. व्यक्ति की निराशावादिता की मात्रा ही यह तय करती है कि उसका विनाश कितनी जल्दी होगा, उन्नति या प्रगति की कोई भी सम्भावना मैं नहीं देखता. (ख़ुद से तो वह कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता, ये मेरा अनुभव है क्योंकि उसमें आगे बढ़ने की इच्छाशक्ति का अभाव जो है.) यह एक बड़ा सत्य है कि निराशावाद की मात्रा व्यक्ति के अन्दर के ख़ालीपन को लगातार बढ़ाती जाती है. और व्यक्ति धीरे-धीरे संज्ञा-शून्यता की ओर बढ़ता जाता है. एक समय ऐसा आता है कि उसमें और कोमाग्रस्त व्यक्ति में कोई अन्तर नहीं रह जाता है. मैं स्वयं को पतनोन्मुख पा रहा हूँ, इसीलिए किसी भी फ़्रेंड रिकवेस्ट को अब तक नहीं स्वीकारा है. जब मुझे मुझमें कुछ सकारात्मक दिखेगा, कुछ ख़ुशियाँ दिखेंगी तो ज़रूर शेयर करूँगा आप सभी के साथ, तब आप लोगों को जोड़ लूँगा. मेरा यह लेख (लेख तो नहीं है ये, मैं मेरे मन के विचारों को लगातार टाइप करता जा रहा हूँ, यह मेरा ख़ुद का अवसादग्रस्त जीवन है. मैं ज़रूर इन विचारों को व्यवस्थित कर कई सारे आलेख लिखना चाहूँगा. क्योंकि ऐसे विचार ना तो किसी पुस्तक में हैं और ना ही इंटर्नेट पर ऐसी कोई जानकारी है, अतः यह बेहद आवश्यक भी है) उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकता है जो स्वयं तो स्वस्थ हैं और उनके घर में कोई अवलसादग्रस्त व्यक्ति रहता हो, जिसकी वे देखभाल करना चाहते हों. एक स्वस्थ मानसिकता वाले व्यक्ति को चाहिये कि अवसाद-ग्रस्त व्यक्ति को समझे. हर अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की स्थिति अलग अलग होती है. एक अवसाद ग्रस्त व्यक्ति के साथ क्या न करें - * आप तर्क मत लगाइए उनके साथ, * उन पर दया मत दिखाइए, * उनसे प्यार से भी मत बोलिये, * उनसे नफ़रत से भी मत बोलिये, * एक उपेक्षा का भाव उनके प्रति मत रखिये, * उनका सहयोग भी मत कीजिए, हा हा हा, बिलकुल सही लिखा है मैंने, पर एक स्वस्थ व्यक्ति कुछ समझ पायेगा, मुझे बड़ा ही कठिन लग रहा है. अब शायद आप पूछेंगे कि बात करने का कौन सा तरीक़ा आप ने छोड़ा है भाई, यहाँ तक कि उपेक्षा की भी मनाही कर दी है!! क्या फ़ोन करके बात करें कि ईमेल लिखें !! हाँ नहीं तो...... हा हा हा, यही तो प्रॉब्लम है मित्रों कि अवसाद ग्रस्त व्यक्ति से कैसे पेश आएँ कोई नहीं जानता, सबसे बड़ी बात कि हर व्यक्ति के अवसाद और निराशा का स्तर अलग अलग होता है, जिसके लिए कोई थर्मामीटर भी नहीं बना है. मैं फिर भी आप की सहायता कर सकता हूँ कि कैसे उनसे बात की जाय. एक कोशिश कर रहा हूँ - एक माँ की तरह या एक संवेदनशील व्यक्ति की तरह बिना अवसाद ग्रस्त व्यक्ति के कहे ही उसकी बात को समझिये, मित्रों यही एकमात्र रास्ता है बात करने का. एक बात और, यदि आप वास्तव में सहायता करने के इच्छुक हैं तो आप ऐसे सहायता कीजिये कि आप की सहायता दया भाव ना लगे, बेमन से की गयी सहायता ना लगे, आप की सहायता सहायता ना लगे. सहायता करना आप का काम था, आप ने किया और गए, बिना कोई बदले में उम्मीद के. एक बात याद रखिये कि अवसादग्रस्त मस्तिष्क सब देख सुन रहा होता है, बस प्रतिक्रिया नहीं करता. आप बुरा करेंगे तो भी वह नहीं बोलेगा, आप अच्छा करेंगे तो भी वह नहीं बोलेगा. मुझे ऐसा लगता है कि शायद वह आप के द्वारा की गयी ढेर सारी अच्छाइयों पर कभी एक अच्छी और सकारात्मक प्रतिक्रिया दे दे. एक बात थोड़ी हटके है, कि अवसादग्रस्त व्यक्ति ख़ुद अच्छा करना चाहता है, पर उसकी कमज़ोरियाँ उसको रोक लेती हैं. आपने एक बच्चे को देखा होगा जो खड़े होने की कोशिशें करता है, क्योंकि वह आगे बढ़ना चाहता है पर अवसादग्रस्त व्यक्ति वह बच्चा है जो कि आगे बढ़ना तो चाहता है (सभी नहीं) पर खड़े होने की कोशिशें नहीं करना चाहता. अवसादग्रस्त को एक शब्द में बोलूँ तो यह है इच्छाशक्ति का अभाव. यह अभाव है - * साँस लेने की इच्छा का अभाव, (साँस लेना भी बोझ लगता है, पर ध्यान रहे यह मरने की इच्छा से थोड़ा सा अलग है) * हँसने की इच्छा का अभाव, * रोने की इच्छा का अभाव, * ख़ुश होने की इच्छा का अभाव, * लोगों से मिलने की इच्छा का अभाव, * अकेले रहने की इच्छा का अभाव, * खाने की इच्छा का अभाव, * भूखे रहने की इच्छा का अभाव, * जीने की इच्छा का अभाव, * मरने की इच्छा का अभाव, * जीवन में प्रगति की इच्छा का अभाव, * जीवन में अवनति की इच्छा का अभाव, * बड़ी ही विकट स्थिति होती है यह. अब आप कहेंगे कि भाई जब कुछ स्पष्ट ही नहीं है तो फिर होता क्या है !! (एक गाना याद आ रहा है कि वही होता है जो मंजूरे ख़ुदा होता है, ख़ैर यह तो हँसी की बात हो गयी) उनके जीवन में बस जो हो रहा हो होता जाता है, जैसे मैंने खाना खाने या ना खाने की बात की है तो इसका मतलब है कि वह खाना तो खायेगा भूख तो लगना शाश्वत नियम है, पर बेमन से, वह भी अनुचित समय पर, वह भी आधा अधूरा. उसको पकवान की कभी कोई चाह नहीं होती है. आप पकवान और सूखा भोजन उसके सामने रख दें वह दोनों को एक समान भाव से खाएगा. और यदि पकवान ना देकर उठा ले जाएँगे तो भी वह चुप चाप सड़ा भोजन खा लेगा. इसलिए नहीं कि वह आप से लड़ाई मोल नहीं लेना चाहता, ना तो इसलिए कि उसको पकवान बेकार लगा, बल्कि उसको कोई भी फ़र्क़ नहीं पड़ता दोनों भोजन में. फिर उसे बेहद सड़ा-गला और बासी भोजन खाने से भी कोई गुरेज़ नहीं होती. ठीक वही बात प्रगति और अवनति की भी है, वह प्रगति तो चाहता है (शायद, सभी अवसाद ग्रस्त नहीं चाहते) पर क़दम उठाने का इच्छुक नहीं है. ऐसे में आप को कैसे आचरण करना चाहिये !! यह बड़ा प्रश्न नहीं बल्कि बेहद संवेदनशील प्रश्न है. आप को उसको आगे बढ़ाने के लिए थोड़ा सा बल देना चाहिये पर ज़्यादा नहीं, यह आप की समझदारी पर निर्भर करता है, (याद रहे कि उसकी कमियाँ ज़रूर उसके आड़े आयेंगी) आप उसकी उँगली पकड़ कर उसको बड़े ही प्यार से, बेहद ही संवेदनशील तरीक़े से उसको चलाइये, पर ज़्यादा न चलायें, क्योंकि उसको आदत जो नहीं है. जब वह थोड़ा चल ले तो उसको उसके मनपसन्द उपहारों से लाद दीजिये. ऐसा बार बार कीजिये, फिर सब ईश्वर पर छोड़ दीजिये. मेरा मानना है कि ज़रूर कुछ अच्छा होगा. मेरा कहना है कि आप उसके लिये वह सब कुछ करिये जो की एक स्वस्थ व्यक्ति को ख़ुद के लिए करना चाहिये. आप यह सोचिए और समझिये कि उसको अभी आपकी देखभाल और प्यार की आवश्यकता है, वह अभी स्वयं अपने काम कर पाने में असमर्थ है. उसको सामान्य होने के लिए थोड़ा समय दीजिए. कितना !! यह तो ईश्वर की इच्छा पर है. अब एक बात और (यह बहुत कठिन बात है, सबके लिए सम्भव भी नहीं है और यह अत्यन्त धैर्य का विषय है) कि हम एक अवसादग्रस्त व्यक्ति को सामान्य बनाने के लिये क्या क्या कर सकते हैं - * आप उसे जब तब गले लगाइये, यह इग्नोर कर के कि वह बेहद गन्दा है, उसे सफ़ाई पसन्द नहीं है. कभी ना भड़कें उसकी गन्दगी पर, आप पूरी तरह से इग्नोर कर दें. यह आप की अग्नि परीक्षा है और उसके मृत मन पर प्यार का मरहम या संजीवनी साबित हो सकती है. (मैं गारण्टी नहीं लूँगा, पर मेरी तरफ़ से पूरे बल के साथ यह बात कही जा रही है. मृत मन में जान फूँकी जा सकती है भला!! पर चमत्कार नाम की भी चीज़ होती है मित्रों) * आप उसकी आवश्यकता की सभी वस्तुएँ उसके पास रख दें, जैसे कम्बल, साफ़ कपड़े, साफ़ पानी आदि. और आप यह भी जानिये कि गन्दगी नकारात्मक ऊर्जा का स्तर बढ़ाती है और स्वच्छता सकारात्मक ऊर्जा का, तो यदि वह भले ही साफ़ सफ़ाई को ना समझे या समझ के बावजूद भी गन्दा रहे, तो आप सफ़ाई बनाए रखें, क्या पता, कब उसके अन्दर यह सब देख कर सफ़ाई की भावना पैदा हो जाए या कम से कम गन्दा रहने का एक सकारात्मक भाव पनप जाए. उसकी ज़रूरत की सभी वस्तुएँ उसके पास रखें मगर बिना अहसान जताये, बिना दया दिखाए, बिना प्यार जताये [प्यार भी नहीं, ये विपरीत भाव पैदा कर सकता है, उसका निराशावादी आत्मघाती मन (शायद सभी के लिए घातक, आप के प्रति भी) सब नष्ट कर देना चाहता है] आप उसको उसकी ज़रूरत की सभी वस्तुएँ देना मात्र अपना कर्तव्य समझें, इसमें भावना की रत्ती भर भी मिलावट नहीं होनी चाहिये. * ना तो आप उसे सामान्य (व्यक्ति) समझें,क्योंकि वह एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में सभी मामलों में कमज़ोर है. ना ही आप उस की किसी से तुलना करें, क्योंकि हर व्यक्ति अपने-आप में दूसरे से अलग होता है. तुलना इसलिए भी ना करें क्योंकि ये अवसादग्रस्त व्यक्ति की कमज़ोरियों को सामने लाती है और एक बेहद कमज़ोर मन को और निराश कर देती है. आप उसकी सहायता करना ही चाहते हैं तो उसकी कमज़ोरियों को धीरे धीरे उससे मुक्त करिए. कमज़ोरियों को कभी ढँकने छिपाने की कोशिश मत कीजिए, हाईलाइट भी ना करें. कमज़ोरियों को स्वतः सामने आने दीजिये और व्यक्ति को जूझने दें. जूझने में सहायता न करें, पर जब वह थक जाये, लड़खड़ा जाये या गिर जाये तब आप ज़रूर उसके लिए उपलब्ध रहें. (मैं यदि कभी सम्भव हुआ तो अवसादग्रस्त व्यक्तियों के लिये केयर सेण्टर खोलना चाहूँगा)
I have written this in Hindi language, very soon I translate this in inglish.
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